चलो दोस्तों कहीं निकल पड़ते है इस लम्बी छुट्टी पे
रास्ता भूला के
कहीं फिर से खो जाते
हैं
तारों की रोशनी
में ठंडी ज़मीन
पे सो जायें
ज़रा
झरने की आवाज़
में और महकती
हवाओं में उलझ जाएँ ज़रा
फिर से पहचान लेते हैं
अपनी अपनी आवाज़ को
चलो दोस्तों कहीं निकल पड़ते है इस लम्बी छुट्टी पे
सोमवार से दफ़्तर मे फिरस्त मुलाक़ात
हो जाएगी तुमसे
वही पुराने भागमभाग और बेमतलब की
लड़ाई में फँस जाएँगे
बोस्स की परेशानी और शिकायतें सब सह लेते हैं
आसानी से
पैसों की भूख
में मजबूर- मज़दूर
बनचुके हैं
चलो दोस्तों कहीं निकल पड़ते है इस लम्बी छुट्टी पे
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